जितिया व्रत पर बेहद शुभ योग देगा पूजा का दोगुना फल! बस, पढ़नी होगी यह कथा
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Jitiya Vrat Katha : माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छी सेहत के लिए जितिया व्रत रखती हैं. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत भी कहते हैं. बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश में जितिया व्रत बेहद प्रचलित है. हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह व्रत रखा जाता है और फिर इसका पारण नवमी तिथि को करते हैं. जितिया व्रत में जीमूत वाहन की पूजा की जाती है.
जितिया व्रत 2024 मुहूर्त व पारण समय
पंचांग के अनुसार इस साल 24 सितंबर मंगलवार को दोपहर 12:38 बजे से अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि प्रारंभ होकर 25 सितंबर बुधवार की दोपहर 12:10 तक रहेगी. उदयातिथि के अनुसार इस बार जितिया व्रत 25 सितंबर 2024, बुधवार को रखा जाएगा. व्रत की पूजन के लिए शुभ समय शाम 4:10 बजे से 5:45 बजे तक है. वहीं जितिया व्रत का पारण समय 26 सितंबर 2024 को सुबह 06:12 बजे से है. वहीं इस बार जितिया व्रत पर वरीयान योग बन रहा है. जिससे व्रत का ज्यादा फल मिलेगा.
जितिया व्रत कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत का पूरा फल तभी मिलता है, जब इसकी कथा पढ़ी जाए. पौराणिक कथाओं के अनुसार जितिया व्रत का संबंध गंधर्व के राजकुमार जीमूत वाहन से है. प्राचीन काल की बात है. गंधर्व राजकुमान जीमूत वाहन जी के पिता अपना सारा राजपाठ सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम चले जाते हैं. लेकिन जीमूत की राजा बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. लिहाजा कुछ समय बाद वह अपने साम्राज्य को अपने भाइयों को देकर अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल चले जाते हैं. जंगल में मलयवती नाम की एक राज कन्या से उनका विवाह हो जाता है.
एक दिन जंगल में जीमूतवाहन को एक बूढ़ी महिला रोती नजर आती है. जीमूतवाहन उस महिला से उसके रोने का कारण पूछते थे तब वो बताती है कि मैं नागवंश की स्त्री हूं और मेरा एक ही बेटा है. जिसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती हूं और नागों ने पक्षियों के राजा गरुण को रोजाना खाने के लिए नाग सौंपने की प्रतिज्ञा दे रखी है. रोजाना दिए जाने वाली बली के क्रम में आज मेरे बेटे शंखचूड़ की बारी है.
तब जीमूत वाहन ने महिला से कहा कि आप घबराइए मत मैं आपके बेटे की अवश्य रक्षा में करूंगा. आज उसकी जगह पर मैं खुद की बलि देने जाऊंगा. इसके बाद जीमूत वाहन ने शंख चूड़ से लाल कपड़ा लिया और बलि देने के लिए शीला पर लेट गए. इसके बाद जब गरुण आए तो वो लाल ढके कपड़े में जीमूत वाहन को दबाकर पहाड़ की ऊंचाई पर ले गए. अपनी चोंच में दबे जीव को रोता देखकर गरुण हैरान हो गए. तब गरुड़ ने जीमूत वाहन से पूछा कि आप कौन हैं? जीमूतवाहन ने उन्हें सारी बात बता दी. गरुड़ जीमूत वाहन की बहादुरी से बेहद प्रसन्न हुए और तब उन्होंने उन्हें जीवनदान तो दिया ही. साथ ही आगे से नागों की बलि ना लेने की भी प्रतिज्ञा ली. कहते हैं इसी के बाद से बेटे की रक्षा के लिए जीमूत वाहन की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है Sandesh24x7 इसकी पुष्टि नहीं करता है.)